धर्म व परंपरा के जानकारों की ले रायशुमारी अन्यथा मंदिर की परंपरा हो सकती है प्रभावित .

उज्जैन– प्रदेश की कमलनाथ सरकार ने प्रदेश के ६ मंदिरों समेत उज्जैन के भी महाकाल मंदिर के कानून में बदलाव कर दिया है। इसके चलते सभी ६ मंदिरों मेंं एक सा कानून लागू होगा। सरकार की मंशा इसके पीछे चाहे जो कुछ रही हो लेकिन शहर के विद्वान व परंपराओं के संवाहकों का यह कहना है कि भले ही कानून को बदल दिया गया हो, परंतु जो शहर में धर्म व पूजा पद्धति व परंपरा के जानकार मौजूद है, उन्हें भी स्थान प्रदान कर उनकी राय शुमारी ली जाये। राय शुमारी ही नहीं बल्कि दिए गए सुझावों को महत्व देना चाहिये, अन्यथा परंपरा प्रभावित भी हो सकती है। अक्षरविश्व ने इस संबंध में चुनिंदा विद्वानों आदि से चर्चा की।

 

मंदिर का राजनीतिकरण न हो

पंडित व्यास-ज्योतिषाचार्य पं. आनंदशंकर व्यास का कहना है कि महाकाल मंदिर ही नहीं अपितु किसी भी मंदिर का राजनीति करण नहीं होना चाहिए। जो भी सरकार आती है, वह अपने हिसाब से परिवर्तन करती है और यह परिवर्तन महज राजनीतिक लाभ की दृष्टि से ही होता है

पंडित व्यास का कहना है कि जो लोग ऐतिहासिक, पुरातात्विक और धर्म के जानकार है, उनकी उपेक्षा नहीं की जाना चाहिए। कानून में बदलाव कर नये नियम लागू किये जा रहे है, इस नियमों में परंपराओं के विद्वानों को प्रमुख अंग बनाना चाहिए।

 

जनप्रतिनिधि संख्या बढ़ाने का क्या औचित्य?-

भारती– मंगलनाथ मंदिर पूजा परंपरा से जुड़े और पूर्व विधायक महंत राजेन्द्र भारती का कहना है कि प्रमुख मंदिरों का एक जैसा विधान होना समय की जरूरत है, परंतु उन्होंने कहा- कि गठित होने वाली नई समिति में जनप्रतिनिधित्व की संख्या बढ़ाने का क्या औचित्य रहेगा।

इसके पीछे क्या तर्क है, इस संबंध में वे स्वयं मुख्यमंत्री कमलनाथ तथा धर्मस्व मंत्री पीसी शर्मा से चर्चा कर पूछेंगे- जनप्रतिनिधियों की संख्या बढ़ाने के पीछे क्या उद्देश्य हो सकता है। भारती ने कहा समिति में धार्मिक परंपराओं के जानकारों की संख्या अधिक रखना चाहिए।

स्थाई बनाई जाए विद्वत परिषद्- पंडित उपाध्याय– धर्माधिकारी पंडित गौरव उपाध्याय का कहना है कि महाकाल मंदिर में विद्वत परिषद बनी हुई है, परंतु इसके सुझाव क्या कभी मान्य किये गए है, यह अपने आप में एक प्रश्न है। लिहाजा अब यदि कानून में परिवर्तन किया जाता है तो विद्वत परिषद् को स्थाई बनाए और परिषद सदस्यों को समिति में महत्वपूर्ण स्थान दिया जाए।

विद्वानों का समावेश हो, विशेषकर तीर्थ, पूजा परंपरा से जुड़े लोगों को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है। वरना अभी तक जो होता रहा है, वह आगे भी होता रहेगा, फिर परिवर्तन की जरूरत ही क्या।

 

स्थाई बनाई जाए विद्वत परिषद्- पंडित उपाध्याय

धर्माधिकारी पंडित गौरव उपाध्याय का कहना है कि महाकाल मंदिर में विद्वत परिषद बनी हुई है, परंतु इसके सुझाव क्या कभी मान्य किये गए है, यह अपने आप में एक प्रश्न है। लिहाजा अब यदि कानून में परिवर्तन किया जाता है तो विद्वत परिषद् को स्थाई बनाए और परिषद सदस्यों को समिति में महत्वपूर्ण स्थान दिया जाए। विद्वानों का समावेश हो, विशेषकर तीर्थ, पूजा परंपरा से जुड़े लोगों को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है। वरना अभी तक जो होता रहा है, वह आगे भी होता रहेगा, फिर परिवर्तन की जरूरत ही क्या।

 

एक ही कानून के तहत होगा मंदिरों की व्यवस्था का संचालन
गौरतलब है महाकाल, इंदौर के खजराना, मैहर के शारदा मंदिर समेत प्रदेश के 6 प्रसिद्ध मंदिरों की व्यवस्थाओं का संचालन अब एक ही कानून के तहत होगा। नए अधिनियम में इन मंदिरों के कोष, बजट, लेखा, चढ़ावा, दान आदि के लिए भी नियम तय किए गए हैं। इस कानून के बनते ही मंदिरों के मौजूदा ट्रस्ट भंग हो गए हैं। नया अधिनियम लागू होने के बाद किसी भी विशेष मंदिर के लिए अलग से अधिनियम नहीं बनाना पड़ेगा। एक नोटिफिकेशन के जरिए मंदिरों को जोड़ा जा सकेगा।

क्या है नया कानून
हर मंदिर में एक समिति।
संचालन समिति के प्रमुख कलेक्टर होंगे।
हिंदू धर्म को न मानने वाला समिति का सदस्य नहीं होगा।
समिति डिप्टी कलेक्टर स्तर के अधिकारी को प्रशासक नियुक्त कर सकेगी, जो समिति का सचिव भी होगा।
समिति में शामिल सदस्यों को हटाने का भी प्रावधान किया गया है।
मानसिक संतुलन बिगडऩे, कोर्ट से सजा होने, मंदिर के विरुद्ध क्रिया कलाप, छुआछूत करने पर सदस्य को हटाया जा सकेगा।

 

१९ वर्षों बाद किया मंदिर एक्ट में संशोधन-

कमलनाथ सरकार ने महाकाल मंदिर अधिनियम 1983 में यह दूसरा संशोधन किया है। इसके पहले 2000 में संशोधन किया गया था। इसमें महानिर्वाणी अखाड़ा के महंत को प्रबंध समिति का सदस्य बनाया गया था। मंदिर की व्यवस्थाओं का संचालन 1983 के अधिनियम के तहत होता है। इसमें अभी तक जनप्रतिनिधि के रूप में केवल महापौर ही शामिल थे।

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